निरीह आँखें
ढूंढ़ रही एक आशा को
एक किरण उजाला की
एक रोटी जीवन की
एक पल खुशियों का
एक-एक उमंगो को
जीने की।
अनजान छितिज़ में खोई है
न जाने कितना ये रोई है
अंजानो को अपना बनाने में,
ज़माने से न ये सोई हैं,
सपनो को अपना बनाने में।
छूट रही हैं,
किरणों की उम्मीदें
रोटियों की भीख
सपनो की सफ़र
अपनों का प्यार
सुखों की बयार
प्राणों की डोर
और फिर
टूट रही हैं आशाएं।
Thursday, April 29, 2010
Thursday, April 22, 2010
माँ
जननी ही नाजनी है,
जानती है
सपने बुनती है
दाने चुगती और चुगती है,
अल्हरती है
बहलाती है,
हर क़ज़ा से बचाती है,
एक-एक पल को चुन कर
जीवन देती है वह,
शरीर के अपने प्रेम-प्यार से
बड़ा कर दंभ से भर जाती है,
तुमको अपना एक स्तम्भ बताती है,
माँ माँ ही है,
हर पल, हर दिन का
गौरव तुम्हे बनती है.
जानती है
सपने बुनती है
दाने चुगती और चुगती है,
अल्हरती है
बहलाती है,
हर क़ज़ा से बचाती है,
एक-एक पल को चुन कर
जीवन देती है वह,
शरीर के अपने प्रेम-प्यार से
बड़ा कर दंभ से भर जाती है,
तुमको अपना एक स्तम्भ बताती है,
माँ माँ ही है,
हर पल, हर दिन का
गौरव तुम्हे बनती है.
Tuesday, April 20, 2010
सरलता से अब कोई मर न सकेगा
सर्कार ऐसी व्यवस्था
करने जा रही है।
इतरा रही है, उतारा रही है,
जतला रही है,
सर्वे व अनुसंधानों का सिलसिला
अधिनियमों का नया अध्याय
लिखे जा रहे है कि
कोई इंसानियत हर न सकेगा,
सरलता से अब कोई मर न सकेगा।
न जाने नित नया मिसन बन जाता है,
विकास का दिया जला दिया जाता है,
जनता का पैसा गला दिया जाता है,
नित नए-नए आंकड़े बालते है,
पेट किसी का खली न हो
हर हाथ में कम की माला हो
कोई आसानी अब गड़बड़ कर न सकेगा,
से सरलता से अब कोई मर न सकेगा।
फिर भी मरना बंद न हुआ,
जिसे देखो वह मर जहा है,
मरने को फिर रहा है,
आकड़ो को जुथला रहा है,
सरकार को बहका रहा है।
न जाने किस-किस रास्ते से मर रहा है,
सबको आगाह कर दिया गया है,
डरने की कोई बात नहीं है,
नया मिसन बना दिया गया है,
की अब कोई मौत से दर न सकेगा,
सरलता से अब कोई मर न सकेगा। ।
सर्कार ऐसी व्यवस्था
करने जा रही है।
इतरा रही है, उतारा रही है,
जतला रही है,
सर्वे व अनुसंधानों का सिलसिला
अधिनियमों का नया अध्याय
लिखे जा रहे है कि
कोई इंसानियत हर न सकेगा,
सरलता से अब कोई मर न सकेगा।
न जाने नित नया मिसन बन जाता है,
विकास का दिया जला दिया जाता है,
जनता का पैसा गला दिया जाता है,
नित नए-नए आंकड़े बालते है,
पेट किसी का खली न हो
हर हाथ में कम की माला हो
कोई आसानी अब गड़बड़ कर न सकेगा,
से सरलता से अब कोई मर न सकेगा।
फिर भी मरना बंद न हुआ,
जिसे देखो वह मर जहा है,
मरने को फिर रहा है,
आकड़ो को जुथला रहा है,
सरकार को बहका रहा है।
न जाने किस-किस रास्ते से मर रहा है,
सबको आगाह कर दिया गया है,
डरने की कोई बात नहीं है,
नया मिसन बना दिया गया है,
की अब कोई मौत से दर न सकेगा,
सरलता से अब कोई मर न सकेगा। ।
Saturday, April 17, 2010
खोना- पाना
मित्थ्या इस जीवन में
हर इन्सान मित्थ्या हो गया,
झूठा इतना कि इस कहानी
का अभिनेता बन गया,
मिटा-मिटा कर इंसानियत
जीवन ही मित्थ्या कर दिया।
रुक-रुक कर ही सही
वह न जाने कितना खो दिया,
प् न सका उन उम्मीदों को
जो उसको पाना था.
खोने के लिए बचा ही क्या है
हर तरह से बगाने हुए
जो खोया पाने के लिए,
फिर भी पा ना सके कुछ
खोने के लिए.
हर इन्सान मित्थ्या हो गया,
झूठा इतना कि इस कहानी
का अभिनेता बन गया,
मिटा-मिटा कर इंसानियत
जीवन ही मित्थ्या कर दिया।
रुक-रुक कर ही सही
वह न जाने कितना खो दिया,
प् न सका उन उम्मीदों को
जो उसको पाना था.
खोने के लिए बचा ही क्या है
हर तरह से बगाने हुए
जो खोया पाने के लिए,
फिर भी पा ना सके कुछ
खोने के लिए.
बचा क्या है?
इस नव धरती में
बचा ही क्या है,
कंक्रीट के जंगल में
जाना ही क्या है।
चिल्लाहट है
शोर है- शराबा है,
इंसानियत नहीं
बस पैसा का ही धावा है।
चौराहे बहुत बन गए
जनता भी घर छोड़ चुकी है,
कंक्रीट कि सरक पर
अनाजों को उगा-उगा कर,
इठला रहे है, इतर रहे है,
हमने इन्सान के खून से
क्या जोड़ा है दिखला रहे है।
उनके पास बचा ही क्या है
फिर भी दिखा रहे है,
अपने से अनजान
अपनों को बता रहे हैं,
वह्के-वह्के कदम ही
बता रहे है,
उनके पास बचा ही क्या है?
बचा ही क्या है,
कंक्रीट के जंगल में
जाना ही क्या है।
चिल्लाहट है
शोर है- शराबा है,
इंसानियत नहीं
बस पैसा का ही धावा है।
चौराहे बहुत बन गए
जनता भी घर छोड़ चुकी है,
कंक्रीट कि सरक पर
अनाजों को उगा-उगा कर,
इठला रहे है, इतर रहे है,
हमने इन्सान के खून से
क्या जोड़ा है दिखला रहे है।
उनके पास बचा ही क्या है
फिर भी दिखा रहे है,
अपने से अनजान
अपनों को बता रहे हैं,
वह्के-वह्के कदम ही
बता रहे है,
उनके पास बचा ही क्या है?
Tuesday, April 13, 2010
उनका मुस्कराना
जब जीवन मरुस्थल हो जाता है,
नीरसता छ जाती है,
ह्रदय हाहाकार करता है,
इधर न उधर
आगे न पीछे
कुछ भी नजर आता है,
एक पल का
उनका मुस्कराना
हमें सारा जहाँ
रगीन नजर आता है।
पत्झां के जीवन में
आस कहाँ
प्यास कहाँ
बंद हो जाती है
सब राहें,
इठलाती है
खिलखिलाती हैं
खुशियाँ विखर जाती है,
तब
उनकी एक मुस्कान
नव कोपल की
नव जीवन की सन्देश
लाती हैं।
उनका मुस्कराना
ज़माने का इठलाना
इधर उधर
चारों तरफ
हरियाली छा जाना
खुसुबुओं का छा जाना
ऐसा है उनका आ जाना।
उनका मुस्कराना
हमको जीवन दे जाना।
नीरसता छ जाती है,
ह्रदय हाहाकार करता है,
इधर न उधर
आगे न पीछे
कुछ भी नजर आता है,
एक पल का
उनका मुस्कराना
हमें सारा जहाँ
रगीन नजर आता है।
पत्झां के जीवन में
आस कहाँ
प्यास कहाँ
बंद हो जाती है
सब राहें,
इठलाती है
खिलखिलाती हैं
खुशियाँ विखर जाती है,
तब
उनकी एक मुस्कान
नव कोपल की
नव जीवन की सन्देश
लाती हैं।
उनका मुस्कराना
ज़माने का इठलाना
इधर उधर
चारों तरफ
हरियाली छा जाना
खुसुबुओं का छा जाना
ऐसा है उनका आ जाना।
उनका मुस्कराना
हमको जीवन दे जाना।
आंसू की दहलीज
आंसुओं को किसी सीमा में न बांधिए,
इनको बहने से न रोकिये,
उनके पास और है क्या,
जुबान भी छीन ली,
नजर भी निकल ली।
इतना तो बेदर्दी न दिखाइए,
कि उनके बहने पर बंदिश लगाइए।
इतना सितम न करिए,
इन बेसहारो पर, बेचारो पर,
इनके पास है ही क्या,
जिससे आपको इत्तिला कर सके,
इन सूनी नजरो के पास इतने आसूं
ही कहाँ ?
इनकी बिसात क्या है कि आप से
गुस्ताखी कर सके।
इनके पास इतने जतन ही कहाँ,
कि आप से बच सकें,
रहमो करम कीजिये,
इनको अपनी मर्जी से बहने दीजिये,
इनमे रूखापन न लायिए,
बल है, सकती है तो न इतना सताइए,
छोडो बहनों दो इनमे बंदिश न लगाइए।
इनको बहने से न रोकिये,
उनके पास और है क्या,
जुबान भी छीन ली,
नजर भी निकल ली।
इतना तो बेदर्दी न दिखाइए,
कि उनके बहने पर बंदिश लगाइए।
इतना सितम न करिए,
इन बेसहारो पर, बेचारो पर,
इनके पास है ही क्या,
जिससे आपको इत्तिला कर सके,
इन सूनी नजरो के पास इतने आसूं
ही कहाँ ?
इनकी बिसात क्या है कि आप से
गुस्ताखी कर सके।
इनके पास इतने जतन ही कहाँ,
कि आप से बच सकें,
रहमो करम कीजिये,
इनको अपनी मर्जी से बहने दीजिये,
इनमे रूखापन न लायिए,
बल है, सकती है तो न इतना सताइए,
छोडो बहनों दो इनमे बंदिश न लगाइए।
Saturday, April 10, 2010
खोजता हूँ.
इधर-उधर सब जगह,
जहाँ- जहाँ भी जिसने बताया,
देखा है, परखा है, खोजा है ।
इन्सान ही नहीं मिला है,
इंसानियत ही नहीं दिखी,
देखा एक नया मानव जो
मानव का व्यापार कर रहा है।
इस चौराहे पर
हर रोज एक हादसा होता रहता है,
न जाने कहाँ के कुत्ते घटना में
मरता रहता है।
यह मैं नही, कुछ विशेष कपडे
वाले कहते है, की यही आकर,
न जाने कहाँ के कुत्ते मरते हैं ।
मैं क्या अच्छे - अच्छे उनका नाम
लेने से डरते हैं,
क्योकि न जाने कब किसका
कुत्ते जैसा हल करते है।
जहाँ- जहाँ भी जिसने बताया,
देखा है, परखा है, खोजा है ।
इन्सान ही नहीं मिला है,
इंसानियत ही नहीं दिखी,
देखा एक नया मानव जो
मानव का व्यापार कर रहा है।
इस चौराहे पर
हर रोज एक हादसा होता रहता है,
न जाने कहाँ के कुत्ते घटना में
मरता रहता है।
यह मैं नही, कुछ विशेष कपडे
वाले कहते है, की यही आकर,
न जाने कहाँ के कुत्ते मरते हैं ।
मैं क्या अच्छे - अच्छे उनका नाम
लेने से डरते हैं,
क्योकि न जाने कब किसका
कुत्ते जैसा हल करते है।
Wednesday, April 7, 2010
intajar
इंजर करना छोड़े, आगे ही रहिये,
मत रुको, समय बहुत कीमती है,
आज का दिन कल नहीं आयेगा,
बिता कल ही बहुत रुलाएगा,
एक -एक पल का हिसाब कैसे,
कोई दे पायेगा.
सोचो मत, जो नहीं मिला,
उसको छोडो, उसके लिए
कम से कम कुछ मत छोडो.
मत रुको, समय बहुत कीमती है,
आज का दिन कल नहीं आयेगा,
बिता कल ही बहुत रुलाएगा,
एक -एक पल का हिसाब कैसे,
कोई दे पायेगा.
सोचो मत, जो नहीं मिला,
उसको छोडो, उसके लिए
कम से कम कुछ मत छोडो.
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