Saturday, April 10, 2010

खोजता हूँ.

इधर-उधर सब जगह,
जहाँ- जहाँ भी जिसने बताया,
देखा है, परखा है, खोजा है ।
इन्सान ही नहीं मिला है,
इंसानियत ही नहीं दिखी,
देखा एक नया मानव जो
मानव का व्यापार कर रहा है।

इस चौराहे पर
हर रोज एक हादसा होता रहता है,
न जाने कहाँ के कुत्ते घटना में
मरता रहता है।
यह मैं नही, कुछ विशेष कपडे
वाले कहते है, की यही आकर,
न जाने कहाँ के कुत्ते मरते हैं ।
मैं क्या अच्छे - अच्छे उनका नाम
लेने से डरते हैं,
क्योकि न जाने कब किसका
कुत्ते जैसा हल करते है।

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