Tuesday, April 13, 2010

आंसू की दहलीज

आंसुओं को किसी सीमा में न बांधिए,
इनको बहने से न रोकिये,
उनके पास और है क्या,
जुबान भी छीन ली,
नजर भी निकल ली।
इतना तो बेदर्दी न दिखाइए,
कि उनके बहने पर बंदिश लगाइए।

इतना सितम न करिए,
इन बेसहारो पर, बेचारो पर,
इनके पास है ही क्या,
जिससे आपको इत्तिला कर सके,
इन सूनी नजरो के पास इतने आसूं
ही कहाँ ?
इनकी बिसात क्या है कि आप से
गुस्ताखी कर सके।

इनके पास इतने जतन ही कहाँ,
कि आप से बच सकें,
रहमो करम कीजिये,
इनको अपनी मर्जी से बहने दीजिये,
इनमे रूखापन न लायिए,
बल है, सकती है तो न इतना सताइए,
छोडो बहनों दो इनमे बंदिश न लगाइए।

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