Tuesday, April 20, 2010

सरलता से अब कोई मर न सकेगा
सर्कार ऐसी व्यवस्था
करने जा रही है।
इतरा रही है, उतारा रही है,
जतला रही है,
सर्वे व अनुसंधानों का सिलसिला
अधिनियमों का नया अध्याय
लिखे जा रहे है कि
कोई इंसानियत हर न सकेगा,
सरलता से अब कोई मर सकेगा।


न जाने नित नया मिसन बन जाता है,
विकास का दिया जला दिया जाता है,
जनता का पैसा गला दिया जाता है,
नित नए-नए आंकड़े बालते है,
पेट किसी का खली न हो
हर हाथ में कम की माला हो
कोई आसानी अब गड़बड़ कर न सकेगा,
से सरलता से अब कोई मर सकेगा

फिर भी मरना बंद न हुआ,
जिसे देखो वह मर जहा है,
मरने को फिर रहा है,
आकड़ो को जुथला रहा है,
सरकार को बहका रहा है।
न जाने किस-किस रास्ते से मर रहा है,
सबको आगाह कर दिया गया है,
डरने की कोई बात नहीं है,
नया मिसन बना दिया गया है,
की अब कोई मौत से दर न सकेगा,
सरलता से अब कोई मर सकेगा। ।

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