मित्थ्या इस जीवन में
हर इन्सान मित्थ्या हो गया,
झूठा इतना कि इस कहानी
का अभिनेता बन गया,
मिटा-मिटा कर इंसानियत
जीवन ही मित्थ्या कर दिया।
रुक-रुक कर ही सही
वह न जाने कितना खो दिया,
प् न सका उन उम्मीदों को
जो उसको पाना था.
खोने के लिए बचा ही क्या है
हर तरह से बगाने हुए
जो खोया पाने के लिए,
फिर भी पा ना सके कुछ
खोने के लिए.
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