Thursday, April 22, 2010

माँ

जननी ही नाजनी है,
जानती है
सपने बुनती है
दाने चुगती और चुगती है,
अल्हरती है
बहलाती है,
हर क़ज़ा से बचाती है,
एक-एक पल को चुन कर
जीवन देती है वह,
शरीर के अपने प्रेम-प्यार से
बड़ा कर दंभ से भर जाती है,
तुमको अपना एक स्तम्भ बताती है,
माँ माँ ही है,
हर पल, हर दिन का
गौरव तुम्हे बनती है.

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