Thursday, April 29, 2010

आशा

निरीह आँखें
ढूंढ़ रही एक आशा को
एक किरण उजाला की
एक रोटी जीवन की
एक पल खुशियों का
एक-एक उमंगो को
जीने की

अनजान छितिज़ में खोई है
जाने कितना ये रोई है
अंजानो को अपना बनाने में,
ज़माने से ये सोई हैं,
सपनो को अपना बनाने में

छूट रही हैं,
किरणों की उम्मीदें
रोटियों की भीख
सपनो की सफ़र
अपनों का प्यार
सुखों की बयार
प्राणों की डोर
और फिर
टूट रही हैं आशाएं

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