Thursday, May 27, 2010

इन्सान कि पहचान

इन्सान को इन्सान से
जुदा कर दिया,
न जाने कितने
हिस्सों में बाँट दिया,
अब फिर से सुरु है
एक नै जद्दोजिहाड़।

पहेल किसी को काला
तो किसी को सफ़ेद बना दिया,
फिर भी न हुई तसल्ली तो
धर्मों में बांट दिया,
तसल्ली न हुई तो और
नफ़रत के बीज
जातियों तक फल दिए।

अब उन्ही को गिनना
चाहते है कि
कितने उगे, कितने रुके है
कितने बचे है जिन्हें और
जलना है, उजाड़ना है,
बिखराना है, बहाने
अपनों के अपनों को ही
बिसर जाना है.

Wednesday, May 26, 2010

सबूत

खुशियों को न मिटने दो
किसी को भी न
किसी से बिछड़ने दो
अहसास तो होगा
जब कोई आस-पास होगा
राहें होंगी तो मोड़ भी होगा,
नहीं होगा तो उबासी
नहीं होगी तो उछाछी
एक सुनहरा सा अहसास
जीवन जीने का
होगा ही,
भूल कर अपना पराया
बिसरा कर वासना
जिन्दगी होने का
सबूत तो हंस कर
देना ही होगा।

Thursday, May 13, 2010

सच

सच सच है
पुराना हो या नया
अच्छा हो या नूर
सच तो सच ही है,
सोचो तो सच है क्या
सच ही क्या है?

सच में ढूंढो
सच है क्या?
सच ही अच्छा है क्यों?
पूछो उन लोगो से
जो सच ही खाते है
पीते है, सच ही उगलते है,
यानि कि वही सच है
वही सच को जानते है
और सभी जुठ्लाते है,
क्योकि यही सच बनाते है

सच क्या?
सब इन्ही कि सेन है,
यही जीवन में मेन है
अन्य तो बस मैन है
अंग्रेजी में भी
हिंदी में भी
हर भाषा में इनका ही
जलवा है,
यही सच है, यही सच कि दें है

Monday, May 10, 2010

नया कुछ

टूटा है
छूता है,
जुड़ता हैं
घटता है,
यही तो जीवन है
हर पल एक नया कुछ
होता है, जुड़ता है, छूटता है,
तब कुछ कुछ नया बनता है,
एक पल के इस जीवन में
सब कुछ अपना है,
हर पल, हर जीव, हर वस्तु
और प्रकृति का हर उपहार
सब कुछ तो अपना है

प्रकृति ने
इन्सान बनाया था
हर जीव को सिखाया था
हर वस्तु को उपयोगी बनाया था,
जीवन हो हो
उससे लगाओ लगाया था,
नस्ट हो किसी का
जीवन,
इसीलिये तो उसने
मधुरता को इजाद किया
बिछुड़ना तो हर कोई को है
मिलने - मिलाने का नया रिश्ता
का संचार किया

तू नस्ट होगा, तेरा कुछ
तू तो अविनासी है
शरीर को कुछ कह
यह तो मिटना ही है,
मई बनाऊ या तू
बचेगा नहीं कुछ,
येही तो संजाल यहाँ
तू टिक जायेगा
तो नया कुछ होगा,
बीते का मलाल कहाँ


Sunday, May 9, 2010

माँ

हमारे और आपके जीवन को देने वाली हमको दुनियादारी कि सिख तक पहुचने वाली माँ,
तुमको हम सादर अपना शीश समर्पण करते हैं


एक जीवन देने वाली
दुखो को हरने वाली,
एक-एक पल को संजोकर
मेरे स्वप्नों को स्वरुप देने वाली
एक शरारत पर न्योछावर होने वाली,
जीवन को जोवन देने वाली एक ही
खुद को मिटाकर
हमको सर पर बिठा कर
सयाना बनाने वाली
तुम ही तो हो
माँ,
बस तुम ही हो
माँ


आशा है कि मै माँ - पिता जी की सेवा कर सकूँगा और उनको किसी प्रकार का कस्ट नहीं होने दूं , ऐसी मेरी इच्छा है

माँ दिवस पर एक छोटी सी इच्छा

Saturday, May 8, 2010

फिर वही हिन्दुस्तानी कसाब

एक बाहरी था कसाब
उसे मिटाने में लगा था पूरा
हिंदुस्तान
कसूर था कि लोगो को
उसने मारा है,
उसने क्या?
इन्सान ने इन्सान को मारा है

तमाम बार ऐसा होता है
होता रहा है,
इन्सान इन्सान को मर रहा है,
अपना बड़प्पन दिखा रहा है,
नाम कसाब का दे रहा है

इस देश में जाने कितने
कसाब टहल रहे,
एक कसाब, कसाब पर
बातों के तीरों से
आघात कर रहा है,
खुद मजे में जी रहा है

इन गिरह्बनो के कसाबों
को खत्म करो,
कसाब पैदा होना ही
बंद हो जायेगा,
वो आएगा, ही वो जायेगा,
इन्सान का मरना बंद हो जायेगा,
कसाब इतिहास था, इतिहास ही रह जाएग।।

Thursday, May 6, 2010

कसाब

इतना बड़ा देश
अदना सा एक लड़ाका
एक मंत्रालय का खर्चा
तब लगा एक छोटा सा तड़का,
कि उसे फांसी होगी।

थोड से लोगों ने मर दिए न जाने
कितने सपूतों को,
असली सिपाहियों को
जो बीके नहीं।
इस देश में
सबकुछ बिकता है।
आदमी कि बिसात क्या
उसे तो बस दुख मिलता है।

जब से कसाब का सुख लोगों ने
देखा है,
होदा सी लगी है
एक कसब बनाने की।
कसाब की ही किस्मत क्यों अच्छी थी
अपनी क्यों खोटी,
जो पातें हैं
बस वही रोटी।
क्या जलवा है बन्दे का
क्या अंदाज है जीने का
फौजों की पंक्तियाँ सजी हैं
थालों की बात ही क्या
न जाने किस-किस मेवों से
होता है सत्कार वहां।

Monday, May 3, 2010

लिखना

कहना ही है क्या सबकुछ होता है,
तो ओठ हिले, तो क्या काफी नहीं है
खूब ज्यादा लिखना ही तो अच्छा नहीं,
जब दो सबद ही हकीकत बयां कर देते हैं

Saturday, May 1, 2010

संघर्स करो

जीवन मिलता एक बार,
नास्ता होने में लगे न एक पल,
हो जाये न बेकार,
कर लो संघर्स बार-बार।

जीवन का न मोह करो
झूठे से बच कर
मानव को बचाओ
अत्याचारी को नास्ता कर
अपना एक सिधांत लिखो
मिट कर भी एक नया
अध्याय बनो
पढकर जिसको दुनिया
फिर से एक नयी दुनिया बने।

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सच का सच

जब सच का पलड़ा
उठता है,
हर बात सुहानी हो जाती है,
दिन भी अच्छा-अच्छा लगता,
हर पहलू का रूप
अनोखा प्रकट हटा है।

इठला उठती है धरा
उमड़ उड़ाती हैं घटायें।
सहज नहीं यह अनोखी
दुनिया के हर पहलू
एक-एक पल में
हर एक अदा मनोहारी
हो जाती है।