Saturday, May 8, 2010

फिर वही हिन्दुस्तानी कसाब

एक बाहरी था कसाब
उसे मिटाने में लगा था पूरा
हिंदुस्तान
कसूर था कि लोगो को
उसने मारा है,
उसने क्या?
इन्सान ने इन्सान को मारा है

तमाम बार ऐसा होता है
होता रहा है,
इन्सान इन्सान को मर रहा है,
अपना बड़प्पन दिखा रहा है,
नाम कसाब का दे रहा है

इस देश में जाने कितने
कसाब टहल रहे,
एक कसाब, कसाब पर
बातों के तीरों से
आघात कर रहा है,
खुद मजे में जी रहा है

इन गिरह्बनो के कसाबों
को खत्म करो,
कसाब पैदा होना ही
बंद हो जायेगा,
वो आएगा, ही वो जायेगा,
इन्सान का मरना बंद हो जायेगा,
कसाब इतिहास था, इतिहास ही रह जाएग।।

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