न टूटा है
न छूता है,
न जुड़ता हैं
न घटता है,
यही तो जीवन है
हर पल एक नया कुछ
होता है, जुड़ता है, छूटता है,
तब कुछ न कुछ नया बनता है,
एक पल के इस जीवन में
सब कुछ अपना है,
हर पल, हर जीव, हर वस्तु
और प्रकृति का हर उपहार
सब कुछ तो अपना है।
प्रकृति ने
इन्सान बनाया था
हर जीव को सिखाया था
हर वस्तु को उपयोगी बनाया था,
जीवन हो न हो
उससे लगाओ लगाया था,
नस्ट न हो किसी का
जीवन,
इसीलिये तो उसने
मधुरता को इजाद किया
बिछुड़ना तो हर कोई को है
मिलने - मिलाने का नया रिश्ता
का संचार किया।
न तू नस्ट होगा, न तेरा कुछ
तू तो अविनासी है
शरीर को न कुछ कह
यह तो मिटना ही है,
मई बनाऊ या तू
बचेगा नहीं कुछ,
येही तो संजाल यहाँ
तू टिक जायेगा
तो नया कुछ न होगा,
बीते का मलाल कहाँ।
No comments:
Post a Comment