एक आदमी कि
टेढ़ी-मेढ़ी, टूटी-फूटी
हड्डिया कुचली पड़ी थी,
कुछ लोग रो-रो
चिल्ला रहे थे
एक आदमी ही
हमारे इस आदमी को मार गया.
कुछ भी ले-ले लेता
कुछ भी कर लेता
कम से कम इन्सान को
बक्स देता.
न जाने क्यों आदमी
ही आदमी को खा रहा है,
देखो अब आदमी ही
आदमी के लिए
रो रहा है.
इंसानियत के चबूतरे पर
बात कुछ आदमी
ही आदमी को कट
रहे है, उसे काटने योग्य
बता रहे है.
इंसानियत कि बात
ख़त्म हो चली है
कुत्ते से भी बदतर
मौत इन्सान मार रहा है,
उसकी मौत पर इन्सान ही
हस रहा है, जश्न मन रहा है.
कहकहे लगा रहा है
उसके इन्सान होने पर
शक जाता रहा है.
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