Wednesday, June 29, 2011

क्या यही है गौरव भारतीयों का?

क्या यही है गौरव भारतीयों का?

क्या यही है गौरव भारतीयों का?
क्या वे भारतीय नहीं
जो कमजोर है,
ग्रामीण है,
मजदूर है,
मजलूम है,
है यदि भारतीय तो,
कहा खो गया है उनका
गौरव भारतीयता का.

खाना- पीना भी स्वप्ना बन
पल पल दस रहा है,
अपना ही सबकुछ
यहाँ लुट रहा है.
एक भूखी आत्मा
टूटा शरीर, एक डंडे का सहारा
कपड़ो के तार से लिपटा 
कंकालो का एक समूह
ढूढ़ रहा है,
दर - दर उसका भूला - बिसरा
गौरव आत्मीयता का.
क्या यही है गौरव भारतीयों का?

पूछो उनकी बहु बेटियों से
जिनका शरीर ही
उनका काल बन गया
जीवन के हर पल को
भयानकता से डस गया.
सुबह से उठ
देखना और सहना पड़ता है
भूख और जलालत.
समझौता करना ही पड़ता है,
जीने की जिहालातो से,
एक एक दाना चुन
भरना ही पड़ता है
यह पेट.
कभी जाना ही नहीं सोचा ही नहीं,
क्या है गौरव जीवन या जीने का,
क्या यही है गौरव भारतीयों का?

यही भारत है,
जिसकी गुलामी भी कभी
अच्छी हुआ कराती थी.
कम से कम झूठे गौरव के लिए
झूठी शान और शौकत
के वास्ते निरपराध और बेबसों
को लूटना और निचोडना,
सरीर को भोगना और मिटाना
चंद टुकड़ो के लिए 
इंसानियत और मानवता
को ख़त्म करना,
तो नहीं था.
था तो इतना हमें गुलाम
कहा जाता था,
मनचाहा काम लिया जाता था,
तो वे थे गैर,
यहाँ तो अपने ही उनसे
निर्दयी और कठोर,
उनकी वादी है गौरव,
यही है आज के भारत का सन्देश,
क्या यही है गौरव भारतीयों का?

No comments:

Post a Comment