Friday, January 13, 2012

ठूठ होने के अंजाम पर

एक लंगोटा खरीदा गया है,
हर आदमी के लिए 
जो जिन्दा है और चलता फिरता है,
एक ठूठ के जैसा,
जो किसी खेत या मेढ़ की शोभा होता है,
मिटने के करीब लेकिन 
जिंदगी के नजदीक होता है,
जिन्दादिली की मिशाल होता है,
आज उसे भी हमेशा के लिए
खामोश होना है,
आदमी के लिए.
इंसानियत के नाम पर,
इसे बापर्दा कर दिया जायेगा,
बदलाव के नाम पर,
विकास के नाम पर,
किसी प्रमुख द्वारा,
जिंदगी की बखिया उधेड़ कर
समर्पित कर दिया जायेगा,
इस गरीबी के नाम पर,
उसके ठूठ होने के अंजाम पर.

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