Monday, January 16, 2012

काले मंडल

ये काले- काले खेलमंडल ने
लोगो में एक नया शौक जगा दिया है,
एक नए उत्साह को जन्म दिया है,
पूरे देश में एक ही रंग में रंग दिया है !!

पूरा देश जूझ रहा है,
हर किसी की चर्चा में है,
साधू संत सभी रमे हुए,
धूनी में नहीं एक रंग में,
नए- नए काले, काले खेल में,
नए नए के चक्कर में बने घनचक्कर,
दोल रहे है बड़े- बड़े रंक-रजा और फक्कड़.

ये खेल ही अजीब है,
देश की गिदिपी भी
बाद रही इसी से,
महगाई भी घाट रही इसी से,
रोटी भी घाट रही इसी से,
हर इन्सान का कुछ न कुछ हिस्सा
जुट रहा है इसी से,
कोई यही छिपा रहा,
तो कोई विदेशो में लगा रहा,
हर तरफ अब यही खेल है,
काले धन की ही रेल है.

कुछ समय को इंसान,
इन्सान नहीं हैवान बन रहा है,
पडोसी, पडोसी को ठग रहा है,
भाई-, बाप को काट रहा है,
रिश्तो की कदुआहत सरे आम है,
इज्जत भी इसी काले धन के नाम 
नीलम है,
डाक्टर हैवान बन गया है,
हर पेशेवर लूट रहा है,
कोई जान, तो कोई धर्म
तो कोई रोटी, तो कोई कपड़ा,
देह के अंगो में भी नहीं रहा
अब मानवता का फंडा.

आज नहीं तो कल
सब हो रहे इसी काले धन को बेकल,
इन्सान, इन्सान को कटेगा,
इंसानियत के जनाजे फूकेगा,
हर वास्तु को, उसी काले धन से
चमड़ी को कूटेगा.
अब फेर बदल तभी होगा,
जब मानवता का पैसे से
नाता टूटेगा.

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