Thursday, May 6, 2010

कसाब

इतना बड़ा देश
अदना सा एक लड़ाका
एक मंत्रालय का खर्चा
तब लगा एक छोटा सा तड़का,
कि उसे फांसी होगी।

थोड से लोगों ने मर दिए न जाने
कितने सपूतों को,
असली सिपाहियों को
जो बीके नहीं।
इस देश में
सबकुछ बिकता है।
आदमी कि बिसात क्या
उसे तो बस दुख मिलता है।

जब से कसाब का सुख लोगों ने
देखा है,
होदा सी लगी है
एक कसब बनाने की।
कसाब की ही किस्मत क्यों अच्छी थी
अपनी क्यों खोटी,
जो पातें हैं
बस वही रोटी।
क्या जलवा है बन्दे का
क्या अंदाज है जीने का
फौजों की पंक्तियाँ सजी हैं
थालों की बात ही क्या
न जाने किस-किस मेवों से
होता है सत्कार वहां।

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